ध्यान एक बार सिद्ध हो जाय तो
ध्यान कोई सन्यास का रास्ता नहीं
जिसे करने से घर बार, संसार
सब स्वतः छूट जाएगा।








सब छूट जाने का काल्पनिक भय इतनी गहराई से भीतर बैठा है कि ध्यान को अधिकतर एक उम्र के बाद कि साधना मानी जाती है।
ध्यान डरने का नहीं, बल्कि आत्मसात करने का विषय है, इसकी सिद्धि आज के युग के बहुआयामी लक्ष्यों को बिना किसी उलझन पूरा कर पाने का आसन रास्ता है। यह किसी भी प्रकार से परिवार समाज से विरक्त होने का मार्ग नहीं अपितु
मन की शक्ति को सशक्त कर किसी भी विषय पर एकाग्र होने की साधना है। ध्यान एक बार सिद्ध हो जाय तो, इसके माध्यम से आप स्वयं के किसी भी लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि ध्यान की जागृत स्थिति आपको इतना सामर्थ्यवान बनाती है, कि एक ही समय पर विचारों की खिचड़ी हुए बिना आप हर एक विषय पर पैनी नजर रख सकते हैं, एक विचार किसी अन्य विचार को क्लैश नहीं करता। आप अनेकों लक्ष्य पर एक साथ नजर रख सकने में सक्षम हो जाते हैं। आज की जीवन शैली किसी के चाहने या न चाहने के परे बुनियादी तौर पर मल्टीटास्किंग हो चुकी है । ध्यान इसी मल्टीटास्क को सहजता से पूर्ण करने हेतु मन का सिद्ध स्तर है जिसे प्राप्त कर जीवन को आसान बनाया जा सकता है।
अनंत शुभकामनाएं



No comments