मनुष्यता की सामान्यता में
"मनुष्यता का दिव्य अनुभव"









जिंदगी के किसी न किसी पड़ाव पर "जागरूक जिंदगी' खुद से ही एक सवाल जरूर पूछती है, जिसे ज्यादातर नजरअंदाज ही होना होता है, कि कुछ तो बताओ, की निःस्वार्थ क्या किया, जिस पर गर्व हो सके, तो ऐसे समय के लिए पास में कुछ तो ऐसा होना चाहिए, जहां कहा जा सके कि हां, अमुक बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से किया या कर रहा हूँ। सिर्फ मनुष्यता की सामान्यता में, कुछ भी, जिस योग्य हूँ, प्रकृति हित में निःस्वार्थ्य करता हूँ।
नीरज
अनन्त शुभकामनाएं 



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